बाड़मेर-जैसलमेर में भले तापमापी में पारा करीब 39 डिग्री दर्ज किया गया, लेकिन रिकॉर्ड 74.25 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया है।


 बाड़मेर लोकसभा सीट पर कौन मारेगा बाजी,,,,?

राजस्थान और रेगिस्तान। प्यास और पानी। ये रिश्ता यहां किसी से छिपा नहीं। लोकसभा चुनाव में पिछले एक महीने से सबसे ज्यादा गर्म रेगिस्तानी इलाका बाड़मेर-जैसलमेर ही रहा।


रेगिस्तानी इलाकों में तेज गर्मी में शाम होते-होते तपती- जलती रेत ठंडी हो जाती है, लेकिन यहां देर रात तक सियासी तूफान जारी था।

दोनों चरणों की वोटिंग कई राजनीतिक समीकरणों की तरफ इशारा कर रही है। एक बात साफ है कि भाजपा ने आखिरी दौर में कई कमजोरियों को दूर कर लिया।


हालांकि पिछले दो चुनाव में जिस तरह एकतरफा हवा बह रही थी, वैसा इस बार नहीं दिखा। 5 से 7 सीटों पर मुकाबला कड़ा दिख रहा है।

जातियों ने चुनाव पर असर डाला, वहीं परिणाम तय करेंगी

कहा जा रहा था कि इस बार राजस्थान में जातियां निर्णायक भूमिका में हैं। सबसे हॉट बाड़मेर-जैसलमेर सीट की बात की जाए तो यहां जाट वर्सेज अन्य जातियों के बीच चुनाव शिफ्ट हो गया है।


त्रिकोणीय मुकाबले में फंसी इस सीट पर पिछली बार से 0.95% ज्यादा वोटिंग का फायदा किसे मिलेगा देखना होगा, लेकिन यहां पर भाजपा को ज्यादा फायदा होने के आसार नहीं दिख रहे।



उधर, राजस्थान में राजपूत, जाट, दलित समाज भाजपा के खिलाफ होने की बात कही जा रही थी, लेकिन ऐसा भी पूरी तरह नहीं हुआ है। जोधपुर, पाली, जालोर, बीकानेर, भरतपुर, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा, राजसमंद और उदयपुर सहित कई सीटों पर भाजपा के पक्ष में इन्होंने मतदान किया। पहले चरण में झुंझुनूं, चूरू, सीकर, नागौर, दौसा की सीटों पर असर दिखा।


जीत के मार्जिन पर असर पड़ेगा

पिछले दो लोकसभा चुनाव में 25 में से 22 सीट पर बीजेपी का जीत का मार्जिन काफी था। इस बार सभी सीटों पर मार्जिन घट सकता है। 16 सीटें जिन पर जीत तय मानी जा रही है, वहां भी इस बार अंतर पहले की तुलना में घट सकता है। 9 सीटों पर जो भी पार्टी जीते अंतर मामूली ही रहना है। इस बार कम वोटिंग से भी इसका नुकसान होगा।



अब पढ़िए, किस सीट पर भाजपा-कांग्रेस के लिए क्या समीकरण बन रहे हैं...


बाड़मेर : बीजेपी के कोर वोटर्स में भाटी की सेंध

बाड़मेर-जैसलमेर सीट की बात की जाए तो इस सीट का इतिहास रोचक रहा है। यहां पर 2014 में वरिष्ठ नेता जसवंत सिंह को दरकिनार करके कांग्रेस से आए कर्नल सोनाराम को प्रत्याशी बनाया गया था।


दरकिनार करने पर जसवंत सिंह ने निर्दलीय ताल ठोंक दी। स्वाभिमान का नारा दिया। ऐसे में चुनाव कांग्रेस और भाजपा के बीच होने के बजाय निर्दलीय और भाजपा में शिफ्ट हो गया। कांग्रेस प्रत्याशी हरीश चौधरी तीसरे नंबर पर रहे।


उस वक्त भी भाजपा और कांग्रेस के दोनों प्रत्याशी जाट थे और निर्दलीय जसवंत राजपूत। जसवंत सिंह इस चुनाव में 87,461 वोटों से हार गए, लेकिन उनके समर्थकों के मन में हमेशा के लिए न मिटने वाली टीस बैठ गई।


अब उनके बेटे मानवेंद्र भाजपा में आ गए, लेकिन समर्थकों के मन में टीस वैसी ही रही और इसे रविन्द्र सिंह भाटी ने हवा दी। इस बार भी यही कहा जा रहा है कि चुनाव दो पार्टियों में नहीं बल्कि निर्दलीय और एक पार्टी के बीच रहेगा।



भाजपा के प्रत्याशी रहे कर्नल सोनाराम अब कांग्रेस में हैं। यहां पर भाजपा प्रत्याशी केंद्रीय मंत्री कैलाश चौधरी की चुनौती बढ़ी हुई है।


निर्दलीय रविंद्र सिंह भाटी ने समाज के साथ मूल ओबीसी के वोटों में सेंधमारी की है, जो बीजेपी को कोर वोटर्स था। शिव विधानसभा में पूर्व विधायक अमीन खान के खुले में रविंद्र सिंह भाटी को समर्थन देने से भाटी को फायदा होने की उम्मीद है।


इससे रविंद्र सिंह भाटी टक्कर में तो है। हालांकि जैसलमेर शहर में और मुस्लिम वोटों में रविन्द्र सिंह ज्यादा सेंधमारी नहीं कर पाए। बीजेपी ने कमबैक करते हुए अपने कोर वोटर के वोट लेने के प्रयास किए और किसी हद तक सफल भी रही है।

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राजस्थान में लू के थपेड़े पड़ते हैं तो रेतीले धोरे झरने की तरह बहने लगते हैं। अभी न तेज गर्मी शुरू हुई है और न लू बह रही है, लेकिन दस साल में पहली बार ऐसा है कि लोकसभा चुनाव में गर्मी सिर चढ़कर बोल रही है

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